Wednesday, August 13, 2008
सेकुलर चैनलों की खुल गई पोल
टीवी देख रहा हूं.. चैनल बम बम भोले की रट लगाते लोगों के एंबियांस से गुंजायमान है। एनडीटीवी पर शेखी बघारते बड़े पत्रकार जम्मू को नजरअंदाज़ करते हुए श्रीनगर की घटना के बारे में जोर देते हुए खबरदार करते हैं- कि १६ प्रदर्शनकारी मार डाले गए। पद्मश्री से नवाजे गए पत्रकार अपने क़द का फायदा उठाते हुए फतवा जारी कर रहे हैं कि जम्मू और घाटी में मुद्दे बदल गए हैं। बड़े पत्रकार महोदय, क्या मुद्दा हमेशा घाटी ही तय करेगा? संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ स्थिति के बारे में आपकी क्या टिप्पणी है.. जब घाटी में प्रदर्शनकारी पाकिस्तानी झंडे लहरा रहे हैं। जायका चखते-चखते विनोद दुआ जी आपको नजर नहीं आता कि इसके पीछे की क्या पॉलिटिक्स है? श्रीमान नौसिखिया भी बता देगा कि पीडीपी का जम्मू में कोई आधार नहीं है, उन्होंने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का एजेंडा उससे छीन लेने की कोशिश की है। ताकि कश्मीर घाटी में उनका आधार और मज़बूत हो सके। इसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस में घबराहट फैली और उन्होंने भी इस मुद्दे का समर्थन करने का फ़ैसला किया, इसके बाद दोनों पार्टियों में होड़ लग गई।डीडी ने साफ कहा कि घाटी में जरूरी चीजों की कोई कमी नहीं, तो आप किसा आधार पर आर्थिक नाकेबंदी की बात करत हैं? क्या आपको नजर नहीं रहा सेकुलर चैनलों कि धीरे-धीरे यह आंदोलन भाजपा के हाथों से निकलकर एक जनआंदोलन में बदल गया है? आंदोलन का आकार बढ़ता देखकर जम्मू कांग्रेस में घबराहट फैलने लगी है और अब उन्हे अपने कदम पर पछतावा ज़रु हो रहा होगा। ये जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी। राजनीतिक गहमागहमी और खेल की ऐसी की तैसी.. लेकिन जिसतरह ये चैनल उससे खेल रहे हैं उस पर बड़ा रंज होता है। खासकर बौद्धइक माने जाने वाले चैनलों के पत्रकार निराश करते हैं। ुन्हें अपने बुद्धिजीवी होने का गुमान है और ये लगने लगा कि वो देश को मिसलीड कर सकते हैं। इन लोंगो की ताजा रिपोर्टिंग से इतना जल गया हूं कि इनके क्रेडिबिलिटी पर सवालिया निशान लगने लगे हैं। क्रेडिबिलिटी की ए बी सी यानी एक्युरेसी, बैलेंस, और क्लेरिटी की तो इन्होने परवाह ही नही की है. और झंडा बुलंद करते है पत्रकारिता का। एनडीटीवी इंडिया ने साबित कर दिया कि विश्वसनीयता के उसेक लिए कोई मायने नहीं और उसका अपना अजेंडा हैं. किसी खास पार्टी का। हिडन.अजेंडा। लेकिन आगे से आपलोगों के मुंह से १३ पुरस्कारों को की सूची सुनकर बुरा ही लगेगा। इन बड़े नामों ने पत्रकारिता को रखैल बनाकर रख लिया है। दुखी हूं. पहले यही चैनल देखता था, अब नहीं देखूंगा। किसी धर्म की बात नहीं बात सच्चाई और भरोसे का है।
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